चेक बाउंस: चेक बाउंस, पैसे का लेन-देन करने का एक सुरक्षित तरीका है जो बैंकिंग में सबसे आम माना जाता है। इसके बावजूद, कभी-कभी चेक बाउंस हो जाता है, यानी पैसे नहीं मिल पाते। ऐसे मामले में कुछ कानूनी प्रावधान अपनाए जा सकते हैं, इसलिए इस बारे में जानकारी होना जरूरी है।
चेक बाउंस क्यों होता है?
चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं। एक सामान्य कारण यह हो सकता है कि चेक देने वाले के खाते में पर्याप्त धन नहीं होता, जिससे चेक क्लीयर नहीं हो पाता और बाउंस हो जाता है। इसके अलावा, सिग्नेचर मेल न होना, ओवरराइटिंग या अन्य तकनीकी गड़बड़ी भी चेक बाउंस का कारण बन सकती है।
चेक बाउंस होने पर क्या होता है?
जब चेक बाउंस होता है, तो बैंक राशि का भुगतान नहीं करने देता है और चेक देने वाले को एक रसीद भेजता है जिसमें इस बात की सूचना होती है। अगर राशि एक महीने के भीतर नहीं दी जाती, तो चेक लेनदार लीगल नोटिस भेज सकता है।
लीगल नोटिस: खतरे की घंटी
लीगल नोटिस भेजने के बाद चेक देने वाले को 15 दिन का समय मिलता है। अगर उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, तो केस दर्ज किया जा सकता है।
चेक बाउंस में कितनी सजा होती है?
भारत में चेक बाउंस को दंडनीय अपराध माना जाता है और इसके लिए केस दर्ज किया जा सकता है। दो साल की सजा और जुर्माना भी हो सकता है।
बैंक भी लगाएगा पेनल्टी
चेक बाउंस होने पर बैंक चेक देने वाले से पेनल्टी ले सकता है।
कोर्ट पर निर्भर करेगा फैसला
चेक बाउंस के मामले में कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण होता है। फैसले में जुर्माना और ब्याज का निर्धारण होता है।
चेक क्लीयरेंस की लिमिट
चेक को क्लीयर कराने की समय सीमा तीन महीने होती है।
निष्कर्ष
चेक बाउंस एक गंभीर समस्या हो सकती है, इसलिए सावधानी बरतना जरूरी है।